Mere Neshive



Friday, March 18, 2011

Bhor_Bhai_-_Sai_Aarti

Posted by soma at 7:35 AM No comments:
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soma
ये ज़िन्दगी उलझनों से भरी है, जो उलझती सुलझती और फिर उलझन बन जाती है, ज़िन्दगी में कुछ करने का सपना देखा है, पर वो हकीकत नहीं एक सपना बनकर ही टूट जाता है ! आखिर क्यूँ उलझने आती हैं? क्यूँ सपने बिखर जाते हैं? क्या सपने कभी हकीक़त नहीं हो सकते? कोई उम्मीद की किरण क्यूँ नहीं दिखाई देती? ज़िन्दगी तो एक जुआ जैसा खेल है, हार और जीत दोनों ही इसमें शामिल है, हम सपने क्यूँ देखते हैं? सपने तो जैसे अँधेरी गुफाओं में खो जाते हैं ! उलझन में हम यूँ ही उलझते रहे, सपने यूँ ही सजते रहे, उलझन लिपटती रही साये की तरह, हम तड़प उठे सूखे पत्तों की तरह !
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