Thursday, March 15, 2012

Live And Let Live


कितना एहसास है इसमें, नाम से ही सिरहन हो जाती है |

कैसे भूले हम उस माँ को जिसने हमें बनाया है |

अपना लहू पिला - पिला कर ... ये मानुष तन दिलवाया है |

...उसके प्यारे से स्पंदन ने हमको जीना सिखलाया है |

धुप - छाँव के एहसासों से हमको अवगत करवाया है |

हम थककर जब रुक जाते हैं | वो बढकर राह दिखाती है |

दुनियां के सारे रिश्तों से हमको परिचित करवाती है |

जब कोई साथ न रहता है | वो साया बन साथ निभाती है |

खुद सारे दुख अपने संग ले जाकर हमें सुखी कर जाती है |

बच्चों की खातिर वो... दुर्गा - काली भी बन जाती है |

बच्चों के चेहरे में ख़ुशी देख, अपना जीवन सफल बनाती है |

उसके जैसा रिश्ता अब तक दुनियां में न बन पाया है |

कितना भी कोई जतन करले उसके एहसानों से उपर न उठ पाया है |

ऊपर वाले ने भी सोच - समझ कर हमको प्यारी माँ का उपहार दिलाया है |
 

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