ईमानदारी से
चाहती हूँ कहना
कि
मैं ईमानदार नहीं.
क्यों कि
जो कहती हूँ
वो करती नहीं
जो सोचती हूँ
वो होता नहीं
जो होता है
वो चाहती नहीं .
इसी ऊहापोह में
जीती चली जाती हूँ
क्षण - प्रतिक्षण
परिस्थितियों में
ढलती चली जाती हूँ.
जो बदल जाये
वक़्त के साथ
तो बताओ
वो कैसे
रह पायेगा ईमानदार
खुद की सोचों पर भी
बिठा देती हूँ कभी - कभी
अनदेखा पहरेदार
और मान लेती हूँ
कि
ज़िन्दगी जी रही हूँ.
जब कि जानती हूँ
कि
पल पल मर रही हूँ.
इसीलिए
कहती हूँ ईमानदारी से
कि
No comments:
Post a Comment