Sunday, October 16, 2011

Kisi Ki Dhadkan Ke Piche Koi Baat Hoti Hai
Har Dard Ke Piche Kisiki Yaad Hoti Hai
Aap Ko Pata Na Hoga.
Apki Har Khushi Ke Peche Hamari Faryaad Hoti Hai!



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" Mil jaye uljhano se fursat to zara sochna,
Ki kya sirf fursato me yaad karne tak ka rishta hai humse..?:x

Thursday, September 8, 2011

Tera hone laga hoon




1 Din Chidiya Boli: Mujhe Chor Kar Kabhi Tum Urr To Nahi Jaaoge?

Chida: Urr Jaaon To Tum Pakar Lena, …


Chidiya: Main Tumhe Pakar Sakti Hoon, Par Phir Pa Nahi Sakti,


Chida Ki Aankh0n Mein Aansu Aa Gaye Ussne Apne Pankh Torr Liye,


Aur Bola: Ab Hum Hamesha Saath Rahenge.


1 Din Bohut Zor Se Toofaan Aaya Chidiya Urrne Lagi,


Tabhi Chida Bola: Tum Urr Jaao Main Nahi Urr Sakta


Chidiya: Apna Khayal Rakhna Keh Kar Urr Gayi,


Jab Toofaan Thama Aur Chidiya Wapis Aayi To Ussne Dekha K,


Chida Mar Chuka Tha Aur 1 Daali Par Likha Tha,


Kaash TUM Aik Baar To Kehti K, Main Tumhe Nahi Chor Sakti,


To Shayad Main Toofaan Aane Se Pehle Nahi Marta :'(


"Like if dis story made you cry"
.....................................................up ki 

Friday, August 5, 2011

यही गुण उसे विरासत में मिला

पति तो परमेश्रर ही है
             पत्नी का है कहना
       परमेश्रर वाला एक भी गुण
        चाहे पति सीख सके ना
              पति-पत्नी ....
        जीवन के हैं दो पहिये
      जीवन को चलाने के लिए
         दोनों ही हमें चाहिए
          यह बात पति ने 
         अब तक ना मानी
      करता फिरता फिर भी 
        वो अपनी मनमानी
     ऊँचा बोलकर रौब जमाता
    तुझे घर सँभालना नहीं आता
     बड़ी-बड़ी बातें सीख  गया वो
    पत्नी-सम्मान करना नहीं आता
       अपनी नाकामी  का सेहरा
        पत्नी के सिर  ही  बाँधता 
         ठीक हो चाहे गलत
       बस अपनी ही हाँकता
          पत्नी नहीं करती 
      कोई  गिला- शिक़वा 
          यही गुण उसे
        विरासत में मिला

वो भोलापन !
















पैरों पर



मिट्टी थप- थपाकर


छोटा सा एक  घरौंदा


कभी बनाना


कभी तोड़ देना


जब दिल करता


हँसना-गाना


मौज मनाना


कभी -कभी रो देना


याद आता है


आज फिर वही


वो तुतलाता बचपन


वो बेफ़िक्री


वो भोलापन !

भारतीय नारी



भारतीय नारी



निभाती है


ऊँची पदवियों से भी


ऊँचे रिश्ते


कभी बेटी ....


कभी माँ बनकर


या फिर किसी की पत्नी बनकर


फिर भी मर्द


ये सवाल क्यों पूछे -


कैसे बढ़ जाएगी


उम्र मेरी ?


तेरे रखे व्रतों से ?


अपनी रक्षा के लिए


अगर आज भी तुम्हें


बाँधना है धागा


इस इक्कीसवीं सदी में


तेरा जीने का क्या फ़ायदा ?


सुन लो....


ओ भारतीय मर्दो


यूँ ही अकड़ना तुम छोड़ो


आज भी भारतीय नारी


करती है विश्वास


नहीं-नहीं....


अन्धा विश्वास


और करती है


प्यार बेशुमार-


अपने पति


बेटे या भाई से ।


जिस दिन टूट गया


यह विश्वास का धागा


व्रतों से टूटा


उस का नाता


कपड़ों की तरह


पति बदलेगी


फिर भारतीय औरत


जैसे आज है करती


इश्क़ पश्चिमी औरत


न कमज़ोर


न अबला-विचारी ।


मज़बूत इरादे रखती


आज भारत की नारी


धागे और व्रतों से


रिश्तों की गाँठ


और मज़बूत वह करती


जो जल्दी से नहीं खुलती,


प्यार जताकर


प्यार निभाती


भारतीय समाज की


नींव मजबूत बनाती ।


दो औरत को


उसका प्राप्य सम्मान


नहीं तो.....


रिश्तों में आई दरार


झेलने के लिए


हो जाओ तैयार !!

रिश्ते


                   सीख लिया ये जिस दिन हमने



             बिना हिसाब रिश्ते निभाना॥


             देख लेना तुम फिर उसी दिन


             कुछ और ही होगा ज़माना !!

लाडो-बिटिया

अपना जन्म-दिन मना रही हूँ !





















एक बेटी के मन की बात 
बात पुरानी वही आज 
मैं बताने लगी हूँ 
माँ के आँचल की बात 
बाबुल के महलों की बात 
मैं सुनाने लगी हूँ 
जिस दिन बिटिया जन्मी 
न दी किसी ने बधाई 
बिटिया को सीने से 
लगाकर बैठी माँ की 
पिता ने की खूब 
हौसला - अफ़जाई 
और कहा-
तुम देखना अपनी बिटिया 
लाखों में एक होगी 
कहती हैं नन्हीं उँगलियाँ 
हर कला में वह कुशल होगी 
लाडो बिटिया ने भी 
माँ -बाप के आगे 
न कभी आँख उठाई 
न  कभी खोली थी जुबान 
तन - मन से उसने 
माँ -बाप के किए 
पूरे सब अरमान 
प्यार भर आँचल में 
लाडो ससुराल चली गई 
बाबुल का आँगन वह 
सूना -सूना सा कर गई 
अब मीलों दूर बैठी भी 
माँगती है बस यही दुआएँ 
बाबुल के महलों में 
चलती रहें हमेशा 
सुख की शीतल हवाएँ
बेटी की बलाएँ लेती 
प्यार भरा आशीष  देती 
आँचल में भरकर उसे 
मन ही मन माँ सोचती -
पूत करें घर का बँटवारा
बिटिया दुःख है बाँट लेती 
दुःख - सुख सुनकर माँ बाप के 

दिल का दर्द बिटिया हर लेती 
 जन्म देकर बेटी को 
फिर क्यों ......
एक माँ अभागन  कहलाती 
जिस दिन बिटिया जन्मी थी 
'ओ मन ' तूने....
 ख़ुशी क्यों नहीं मनाई 
लाडो बिटिया के जन्म पर 
लोग देते क्यों नहीं बधाई  ?

Wednesday, August 3, 2011

अपने अपने प्यार की परिभाषा




ना जाने किसकी तलाश में
जन्मों से भटकती रही हूँ मैं
अपनी रूह से तेरे दिल की धड़कन तक
अपना नाम पढ़ती रही हूँ मैं....

लिखा जब भी कोई गीत या ग़ज़ल
तू ही लफ़्ज़ों का लिबास पहने मेरी कलम से उतरा है
यूँ चुपके से ख़ामोशी से तेरे क़दमो की आहट
हर गुजरते लम्हे में सुनती रही हूँ मैं

खिलता चाँद हो या फिर बहकती बसंती हवा
सिर्फ़ तेरे छुअन के एक पल के एहसास से
ख़ुद ही महकती रही हूँ मैं

यूँ ही अपने ख़्यालों में देखा है
तेरी आँखो में प्यार का समुंदर
खोई सी तेरी इन नज़रो में
अपने लिए प्यार की इबादत पढ़ती रही हूँ मैं

पर आज तेरे लिखे मेरे अधूरे नाम ने
अचानक मुझे मेरे वज़ूद का एहसास करवा दिया
कि तू आज भी मेरे दिल के हर कोने में मुस्कराता है
और तेरे लिए आज भी एक अजनबी रही हूँ मैं!!!

खाली किताब




पढ़ रही हूँ
ज़िन्दगी की किताब
आहिस्ता -आहिस्ता
वर्क दर वर्क
पन्ना दर पन्ना
लफ्ज़ बा लफ्ज़
फिर इस के
एक -एक
हर्फ को उतारूँ
अपने जलते हुए सीने में
और इस तरह बीता दूँ
अपनी लम्बी ज़िन्दगी की
तन्हा रात ..
वर्ना यह अँधेरे
मुझे अपने में समेट कर
खाली किताब सा कर देंगे !!!

प्यार क्या है ?






(1)
प्यार क्या है, एक राही की मंज़िल.......
एक बंज़र जमी पर, अमृत की प्यास......
पारस पत्थर को ढुँढ़नें की खोज.......
ना पूरा होने वाला एक सुंदर सपना.....
जैसे की बड़ा मुश्किल हो कोई मिलना....
खो के फिर ना पाया हो कहीं पाया .......
मिल के भी,जो ना हुआ हो अपना........
(2)





प्यार है इक एहसास...
दिल की धड़कनी को छूता राग...
या है पागल वसंती हवा कोई...
या है दिल में झिलमिल करती आशा कोई...
या प्यार है एक सुविधा से जीने की ललक...
जो देती है थके तन और मन को एक मुक्त गगन...


तब जिंदगी मेरी तरफ रुख करना .




जिस तरफ़ देखो उस तरफ़ है
भागम भाग .....
हर कोई अपने में मस्त है
कैसी हो चली है यह ज़िन्दगी
एक अजब सी प्यास हर तरफ है
जब कुछ लम्हे लगे खाली
तब ज़िन्दगी
मेरी तरफ़ रुख करना


खाना पकाती माँ
क्यों झुंझला रही है
जलती बुझती चिंगारी सी
ख़ुद को तपा रही है
जब उसके लबों पर
खिले कोई मुस्कराहट
ज़िन्दगी तब तुम भी
गुलाबों सी खिलना


पिता घर को कैसे चलाए
डूबे हैं इसी सोच को ले कर
किस तरह सब को मिले सब कुछ बेहतर
इसी को सोच के घुलते जा रहे हैं
जब दिखे वह कुछ अपने पुराने रंग में
हँसते मुस्कराते जीवन से लड़ते
तब तुम भी खिलखिला के बात करना
ज़िन्दगी तब मेरी तरफ़ रुख करना


बेटी की ज़िन्दगी उलझी हुई है
चुप्पी और किसी दर्द में डूबी हुई है
याद करती है अपनी बचपन की सहेलियां
धागों सी उलझी है यह ज़िन्दगी की पहेलियाँ
उसकी चहक से गूंज उठे जब अंगना
तब तुम भी जिंदगी चहकना
तब मेरी तरफ तुम भी रुख करना

बेटा अपनी नौकरी को ले कर परेशान है
हाथ के साथ है जेब भी है खाली
फ़िर भी आँखों में हैं
एक दुनिया उम्मीद भरी
जब यह उम्मीद
सच बन कर झलके
तब तुम भी दीप सी
दिप -दिप जलना
ज़िन्दगी तुम इधर तब रुख करना

नन्हा सा बच्चा
हैरान है सबको भागता दौड़ता देख कर
जब यह सबकी हैरानी से उभरे
मस्त ज़िन्दगी की राह फ़िर से पकड़े
तब तुम इधर का रुख करना
ज़िन्दगी अपने रंगों से
खूब तुम खिलना...

Tuesday, August 2, 2011

दुनिया नई बसा लेते हैं लोग

इससे पहले कि दिया बुझे, दिया नया जला लेते हैं लोग
दिया तो दिया, दुनिया नई बसा लेते हैं लोग
डरते हैं पतन न कहीं जाए झलक
चेहरे पे चेहरा लगा लेते हैं लोग
यूँ तो आने-जाने की किसी को फ़ुरसत नहीं
लेकिन बात-बात पे महफ़िल जमा लेते हैं लोग
कभी इसकी तो कभी उसकी
जैसे भी हो खिचड़ी पका लेते हैं लोग
भरती का शेर राहुल से बनता नहीं
बनाने को बनाने वाले बना लेते हैं लोग

तुम सोचती होगी..................


तुम सोचती होगी
कि मेरा बुखार उतर गया होगा
तुम्हारा सोचना वाजिब भी है
पिछले आठ महीनों से मैंने तुम्हें फोन जो नहीं किया
और ना ही जन्मदिन की बधाई दी
या नव-वर्ष की

लेकिन
शायद तुम यह नहीं जानती
कि जब दर्द हद से गुज़र जाता है
तो दर्द ही दवा बन जाता है

अब मुझे
न तुम्हारी
न तुम्हारी आवाज़ की
न तुम्हारी तस्वीर की
किसी की भी ज़रूरत नहीं है

अब मैं हूँ तुम
और तुम हो मैं


Monday, August 1, 2011

पहेलियाँ


आज से तीन- चार दशक पहले की बात करने जा रही हूँ , तब टी. वी. ने हमारी शाम को अपने आलिंग्न में नहीं लिया था । शाम होते ही बच्चे, दादी/ नानी से खाना खाते समय ही रात को सुनाई जाने वाली कहानी का वादा ले लेते । कभी - कभी तो एक ही कहानी दो-दो रात चलती रहती । कभी पहेलियाँ बुझाई जातीं ।


वो पहेलियाँ ....जब आज भी मैं याद करती हूँ....ऐसा लगता है ....हम बच्चे दादी के पास बैठे..... मैं बताऊँ...मैं बताऊँ... का शोर मचा रहे हों .... और दादी कहती हो....' अरे भई....जरा दम तो लो .....पहले पहेली कहने तो दो'

 आज  मैं अपनी यादों की पिटारी खोल..... कुछ पहेलियाँ ले कर आई हूँ     
आज बारी आप की है....'शब्दों का उजाला' के पाठकों की..... पहेलियों की शाम ....आप के नाम.....
( पाठकों की जानकारी के लिए बता रही हूँ .....यह पहेलियाँ मैने कोई आप की परीक्षा लेने के लिए नहीं लिखी.....यह तो अपने-आप को अपने बीते हुए कल से जोड़ने का प्रयास है.....आप ने भारत या किसी और देश में रहते यह अनुभव किया है या नहीं कि हम अपने-आप से दूर होते जा रहे हैं....अपने अतीत को भूलते जा रहे हैं...मगर मुझे यह लग रहा है....उसी कल से जुड़े रहने के प्रयास में यह पहेलियाँ ले कर आई हूँ...... )
जैसे-जैसे हम अपने कल को खोजते चले जाएँगे....पहेलियों के उत्तर मिलते जाएँगे....हम हर पहेली के साथ उत्तर लिखते जाएँगे.....

1.   तीन अ‌क्षर का दे हूँ
     जानते लोग लाख करोड़
     पीठ काटो बन जाऊँ
     पाँच उँगली का जोड़.........................  (पंजाब)
                        


2. वो चीज़ जो गीता में नहीं............................   ( झूठ)

                                                  

3.  वो गई , ये आई..............................................  (नज़र)  




4.   आई थी, मगर देखी नहीं................................ (मौत/ नींद)

              
5.   धूप में पैदा हुआ
      छाया मिली , मुरझा गया..................................... (पसीना) 
             


                    
6.   तीतर के दो आगे तीतर
     तीतर के दो पीछे तीतर
    बोलो कितने तीतर.................................   (तीन)
                    

  

 7.  वो चीज़ कौन सी
    जिसका है आकार
    मगर नहीं है भार .................................. (अक्षर) 



8.  एक कटोरी में
   दो रंग का पानी   (अंडा)
            


9. जिसने खरीदा 
   उस ने नहीं किया प्रयोग
   जिस ने किया प्रयोग
   उस देखा नहीं    ..............................  (कफ़न)
                


10. मैं गोल-गोल
    मैं पीला-पीला
   दूसरे की थाली में
  मैं लगता बड़ा    ................................ (लड्डू)
              

      

11. एक चीज़ है ऐसी
    देखे चोर....
   मगर चुरा न सके .............................. (विद्या - ज्ञान) 
                                            
 
12. हम माँ बेटी
    तुम माँ बेटी
   चलो बाग में चलें
  तीन आम तोड़ कर
   पूरा-पूरा खाएँ ........................... (नानी, माँ और बेटी)
               


13 .सफेद धरती काले छोले
    हाथों बोएँ, मुँह से बोलें           
                            ........................................... (कॉपी पर लिखे गये....' अक्षर')



14 . ऐसा बताओ कौन शैतान
     नाक पर बैठे पकड़े कान  .............................   ( ऐनक) 
                                 
 

15. स्थिर है मगर
     दिन रात चले...................................(सड़क)
                             
 

16. बिन हाथों के
     बिन पैरों के
    घूमें इधर- उधर.............................  (अख़बार)
                         
           

17 . जैसे जैसे मुझे तलाशो
      दिल की अड़चन खोलो
     प्यार मेरे से पायोगे
     रुह की भूख मिटाओगे.......................... (किताब)
                            

18.   छोटा सा सिपाही
       उस की वरदी
      खींच कर उतारी..................................  ( केला)   
                  

19. एक चीज़ आई ऐसी
     सुबह चार टांगों पर
     दुपहर को दो पर
     शाम को तीन पर 
          ............................................(बचपन...जवां...और बुढ़ापा)
                     
20. जिस के लगे
       उस को मारे
     है वो हत्यारा
     न वो फाँसी लगे
    न जाए जेल
    लगता सब को प्यारा ..................................... (चाकू)
                

  


-
21.      छोटी जी पिद्दणी,
          पिद्द पिद्द कर दी ।
          सारे बज़ार दी,
         लिद कट्ठी कर दी॥............................. ( झाड़ू )
                                    
 
22.       हरी सी
            भरी सी
            राजे दे
           दरबार विच्च
           दुपट्टा पा के
            खड़ी सी।  .................................... (मकई का भुट्टा)   
                             
23.     आ से
          ओ से!.............................................. (नज़र)


24 .   उत्ते मैँ हरी सी
        हेठ लाल हां
        अमीर ते गरीब 
        सब दे नाळ हां। .............................. (हरी मिर्च )
                                  
 
25.   देखो मेरा कमाल 
        लाओ तां हरी
      ल्हाओ तां लाल ।........................................(मेहँदी)        



26          वेखो मेरी तक़दीर।
             मेरे टिढ जन्मों 
लकीर। 
                     (कणक का दाना)
                  


27.       बारां जुवाक
           ती पौते
           प्यो दा नां
          दस खोते ! 

            ...............................................( साल, महीना, दिन)
          .
28.   पिच्छों खांवां
         अग्गों 
कढां ।
29.    32 फौजी
        कल्ली नार
        कर दी वार
       नां मन्ने हार। 
           ........................................................(जीभ और दाँत)
.

30.  दुम्म से
       पानी पी कर
      मुख से
      आग उगलती हूं!
 
31.  खड़ी भी चलती
     पड़ी भी चलती
    जड़ी भी चलती
     बंधी भी चलती
    बिन पग भी चलती।
 
32. पहले मैं खाता
      फिर 
     सब को खिलाता!
 
33.  ऊगता हूं
      बढ़ता हूं
      पर
     लगता नहीँ पत्ता।
  
34. नाक पर बैठता
     कान पकड़ता।........................................... (ऐनक)



35. गोभी मटर
    टमाटर प्याज
    सब संग यारी
    अपने जैसी 
    कौन तरकारी? 

हरदीप कौर संधु  

कितना अच्छा होता !


कितना अच्छा होता !जो तुम
यूँ बरसों पहले मिल जाते
सच मानो इस मन के पतझर-
में फूल हज़ारों खिल जाते
खुशबू से भर जाता आँगन ।
कुछ अपना दुख हम कह लेते
कुछ ताप तुम्हारे सह लेते
कुछ तो आँसू पी लेते हम
कुछ में हम दो पल बह लेते
हल्का हो जाता अपना मन ।
तुमने चीन्हें मन के आखर
तुमने समझे पीड़ा के स्वर
तुम हो मन के मीत हमारे
रिश्तों के धागों से ऊपर
तुम हो गंगा -जैसी पावन ।

भारतीय नारी



भारतीय नारी
निभाती है
ऊँची पदवियों से भी 
ऊँचे रिश्ते
कभी बेटी ....
कभी माँ बनकर
या फिर किसी की पत्नी बनकर
फिर भी मर्द
ये सवाल क्यों पूछे -
कैसे बढ़ जाएगी
उम्र मेरी ?
तेरे रखे व्रतों से ?
अपनी रक्षा के लिए
अगर आज भी तु
म्हें
 बाँधना है धागा
इस इक्कीसवीं सदी में
तेरा जीने का क्या फ़ायदा ?
सुन लो....
 ओ भारतीय मर्दो
यूँ ही अकड़ना तुम छोड़ो
आज भी भारतीय नारी
करती है विश्वास
नहीं-नहीं....
अन्धा विश्वास
और करती है
प्यार बेशुमार
-
अपने पति 
बे
टे या भाई से ।
जिस दिन टूट गया
यह विश्वास का धागा
व्रतों से टूटा
उस का नाता
कपड़ों की तरह
पति बदलेगी
फिर भारतीय औरत
जैसे आज है करती
इश्क़  पश्चिमी औरत
न कमज़ोर
न अबला-विचारी
 
मज़बूत इरादे रखती
आज भारत की नारी
धागे और व्रतों से
रिश्तों की गाँ


और मज़बूत वह करती
जो जल्दी से न
हीं  खुलती,
प्यार जताकर
प्यार निभाती
भारतीय समाज की
नींव मजबूत बनाती
 
दो औरत को
उसका प्राप्य स
म्मा
नहीं तो.....
रिश्तों में आई दरार
झेलने के लिए 
 हो जाओ तैयार  !!



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ज़िन्दगी में अगर कोई तूफ़ान न होता।
तो मेरा ये सफ़र कभी आसान न होता।
.................................up ki