अपना जन्म-दिन मना रही हूँ !
एक बेटी के मन की बात
बात पुरानी वही आज
मैं बताने लगी हूँ
माँ के आँचल की बात
बाबुल के महलों की बात
मैं सुनाने लगी हूँ
जिस दिन बिटिया जन्मी
न दी किसी ने बधाई
बिटिया को सीने से
लगाकर बैठी माँ की
पिता ने की खूब
हौसला - अफ़जाई
और कहा-
तुम देखना अपनी बिटिया
लाखों में एक होगी
कहती हैं नन्हीं उँगलियाँ
हर कला में वह कुशल होगी
लाडो बिटिया ने भी
माँ -बाप के आगे
न कभी आँख उठाई
न कभी खोली थी जुबान
तन - मन से उसने
माँ -बाप के किए
पूरे सब अरमान
प्यार भर आँचल में
लाडो ससुराल चली गई
बाबुल का आँगन वह
सूना -सूना सा कर गई
अब मीलों दूर बैठी भी
माँगती है बस यही दुआएँ
बाबुल के महलों में
चलती रहें हमेशा
सुख की शीतल हवाएँ
बेटी की बलाएँ लेती
प्यार भरा आशीष देती
आँचल में भरकर उसे
मन ही मन माँ सोचती -
पूत करें घर का बँटवारा
बिटिया दुःख है बाँट लेती
दुःख - सुख सुनकर माँ बाप के
दिल का दर्द बिटिया हर लेती
जन्म देकर बेटी को
फिर क्यों ......
एक माँ अभागन कहलाती
जिस दिन बिटिया जन्मी थी
'ओ मन ' तूने....
ख़ुशी क्यों नहीं मनाई
लाडो बिटिया के जन्म पर
लोग देते क्यों नहीं बधाई ?
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