Monday, August 1, 2011

MAA


MAA
नारी,
 MAA
तू अति सुन्दर है;
तू अति कोमल है;
सृष्टि की जननी है तू
उम्र के हर पड़ाव पर किन्तु
तेरे नयन हैं गीले क्यों?

ओ धरा-सी वामा तू सुन,
गीले नयनों को नियति न मान
अपने आँसुओं का कर ले निदान
स्वयं को साबित करने की ठान
चल पड़ी तो राह होगी आसान

तेरा  यह  क्रंदन  है  व्यर्थ
जीती  है  तू  सबके  तदर्थ
तू खुद को बना इतना समर्थ
तेरे  जीने का भी  हो  अर्थ।

जिस सृष्टि का तूने किया निर्माण
उसी सृष्टि में मत होने दो अपना अपमान।
तेरे भी अधिकार हैं सबके समान
नारी तू महान थी, महान है, रहेगी महान।

नारी व्यथा की बातें हो गईं पुरानी
नए युग में बदल रही  है  कहानी।
बनती हैं अब वह घर का आधार
पढ़ें-लिखें करें पुरानी प्रथा निराधार।
बेटियाँ होती हैं अब घर की शान
उन्हें भी पुत्र -समान मिलता है मान।
किशोरियों की होती है नई नई आशा
उनके गुणों को भी जाता है तराशा।
अब नारी के होंठ हँसते हैं
खुशी  से  पैर थिरकते हैं
सपने विस्तृत गगन में उड़ते हैं
इच्छाएँ पसन्द की राह चुनते हैं।
नारियों के मुख पर नहीं छाई है वीरानी
वक्त बदल गया,अब बदल गई है कहानी।

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