Wednesday, August 3, 2011

खाली किताब




पढ़ रही हूँ
ज़िन्दगी की किताब
आहिस्ता -आहिस्ता
वर्क दर वर्क
पन्ना दर पन्ना
लफ्ज़ बा लफ्ज़
फिर इस के
एक -एक
हर्फ को उतारूँ
अपने जलते हुए सीने में
और इस तरह बीता दूँ
अपनी लम्बी ज़िन्दगी की
तन्हा रात ..
वर्ना यह अँधेरे
मुझे अपने में समेट कर
खाली किताब सा कर देंगे !!!

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