पति तो परमेश्रर ही है
पत्नी का है कहना
परमेश्रर वाला एक भी गुण
चाहे पति सीख सके ना
पति-पत्नी ....
जीवन के हैं दो पहिये
जीवन के हैं दो पहिये
जीवन को चलाने के लिए
दोनों ही हमें चाहिए
यह बात पति ने
अब तक ना मानी
अब तक ना मानी
करता फिरता फिर भी
वो अपनी मनमानी
वो अपनी मनमानी
ऊँचा बोलकर रौब जमाता
तुझे घर सँभालना नहीं आता
बड़ी-बड़ी बातें सीख गया वो
पत्नी-सम्मान करना नहीं आता
अपनी नाकामी का सेहरा
पत्नी के सिर ही बाँधता
ठीक हो चाहे गलत
बस अपनी ही हाँकता
पत्नी नहीं करती
कोई गिला- शिक़वा
कोई गिला- शिक़वा
यही गुण उसे
विरासत में मिला
विरासत में मिला
ज़िन्दगी क्या है ?
ReplyDeleteएक खेल है,
सुख और दुःख का मेल है,
याद करती हूँ सुख भीने पलों को,
भुलाने को दुःख खिलाती हूँ,
ह्रदय कमल के सुप्त शत दलों को !